रोज 27 लोग मरे दिल्‍ली में सांस की बीमारियों से

रोज 27 लोग मरे दिल्‍ली में सांस की बीमारियों से

सेहतराग टीम

प्रदूषण ने दिल्‍ली और उसके पास जो विकराल रूप लिया है वो तो हम सभी के सामने है ही। अब एक ऐसा आंकड़ा सामने आया है जो लोगों को और डरा देगा। स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन प्रजा फाउंडेशन ने दिल्‍ली के स्‍वास्‍थ्‍य सर्वेक्षण पर आधारित एक रिपोर्ट में यह दावा किया है दो साल पहले 2017 में दिल्‍ली में रोज 27 लोगों की मौत सांस से संबंधित बीमारियों की वजह से हुई है। दिल्ली में दमघोंटू हवा के स्तर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली वालों को चार साल में महज पांच दिन साफ सुथरी हवा मिल सकी। प्रजा फांउडेशन ने 7 नवंबर को अपनी वार्षिक रिपोर्ट में ऐसे दावे किए हैं।

दिल्ली के चिकित्सा संस्थानों के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार 2017 में राष्ट्रीय राजधानी में कैंसर से 5,162, तपेदिक (टीबी) से 3,656 और मधुमेह से 2,561 लोगों की मौत हुयी। रिपोर्ट के अनुसार 2017 में सांस की बीमारियां प्रतिदिन औसतन 27 दिल्ली वालों की मौत का कारण बनीं, जबकि 2016 में यह संख्या 33 मौत प्रतिदिन थी।

रिपोर्ट के अनुसार 2017 में श्वसन-तंत्र तथा इंट्रा-थोरैसिक अंगों के कैंसर के कारण दिल्ली में 551 लोगों की मौत हुई, जबकि साँस से संबंधित अन्य बीमारियों एवं संक्रमण की वजह से एक साल में 9,321 लोग मारे गये।

इसके अलावा रिपोर्ट में दिल्ली वालों को दूषित हवा ही नहीं, बल्कि भोजन पानी भी दूषित मिलने की बात सामने आयी है जिसके कारण दिल्ली में पिछले दो वर्षों में सर्वाधिक पांच लाख से अधिक डायरिया के मरीज सामने आये हैं। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों के आंकड़ों के अनुसार 2018 -2019 के दौरान डायरिया के 5,14,052 मरीज अस्पतालों में इलाज के लिये पहुंचे, जबकि स्वास्थ्य केन्द्रों में पहुंचने वाले मधुमेह के रोगियों की संख्या 3,27,799, उच्च-रक्तचाप के मरीज 3,11,396 , टीबी के 68,722 और मियादी बुखार टाइफाइड के 51,266 गंभीर रोगी अस्पतालों में भर्ती किये गये।

सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली वालों ने अपनी घरेलू आय का औसत 9.8% स्वास्थ्य पर खर्च किया। दिल्ली में वायु गुणवत्ता की नाजुक स्थिति का खुलासा करते हुये रिपोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में 2015 से 2018 तक चार सालों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के अनुसार सिर्फ पांच दिन ही हवा की गुणवत्ता ’अच्छी’ रही। इस अवधि में एक्यूआई का स्तर लगभग पूरे साल खराब रहा, और तीन महीनों तक ‘बेहद खराब’ श्रेणी में हवा की गुणवत्ता दर्ज की गयी।

दिल्ली के 25,041 परिवारों के सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 41% परिवारों ने निजी स्वास्थ्य सेवा और 12% परिवारों ने सरकारी और निजी, दोनों सेवाओं का लाभ उठाया। दिल्ली वालों की प्रति व्यक्ति आय के अनुपात में प्रति परिवार स्वास्थ्य पर खर्च की मात्रा 1,16,887 रुपये है।

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